Connect with us

धर्म

उत्तराखंड में आई 2013 की आपदा से मां धारी देवी का क्या है संबंध

Published

on

मां धारी देवी

Maa Dhari Devi: उत्तराखण्ड में श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी के तट पर कल्यासौर में स्थित माँ धारी देवी का मंदिर, उत्तराखंड की एक अत्यंत पूजनीय और रहस्यमयी शक्तिपीठ है। धारी देवी को उत्तराखंड की संरक्षक देवी माना जाता है, जो चारों धामों – यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की रक्षा करती हैं। यह मंदिर अपनी अनूठी मान्यताओं, चमत्कारों और 2013 की केदारनाथ आपदा से जुड़े घटनाक्रम के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।

मंदिर का स्थान और संरचना

धारी देवी मंदिर अलकनंदा नदी के बीच एक चट्टान पर स्थित है। यह मंदिर श्रीनगर से लगभग 15 किमी और रुद्रप्रयाग से 20 किमी की दूरी पर है। यह दिल्ली-राष्ट्रीय राजमार्ग 55 पर स्थित है, जिससे यहां तक पहुंचना आसान है। मंदिर परिसर तक पहुंचने के लिए नदी के ऊपर एक पुल बना हुआ है। धारी देवी की मूर्ति का ऊपरी आधा भाग (सिर) इसी मंदिर में स्थापित है, जबकि मूर्ति का निचला आधा हिस्सा (धड़) कालीमठ में स्थित है, जहां उन्हें देवी काली के रूप में पूजा जाता है। यह अनूठी विशेषता देवी के पूर्ण स्वरूप को दो अलग-अलग स्थानों पर पूजने का अवसर प्रदान करती है।

पौराणिक कथा और महत्व

मान्यता है कि द्वापर युग से ही धारी देवी की प्रतिमा धारो गांव के पास एक चट्टान पर विराजमान थी। एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भयंकर बाढ़ के दौरान देवी की मूर्ति बहकर धारो गांव के पास एक चट्टान पर आकर रुक गई थी। तब एक आकाशवाणी हुई जिसमें गांव वालों को उसी स्थान पर मूर्ति स्थापित करने का निर्देश मिला। गांव के लोगों ने मिलकर वहां एक मंदिर का निर्माण किया और तभी से यहां देवी की पूजा होती आ रही है।

धारी देवी को ‘दक्षिणी काली माता’ के रूप में पूजा जाता है और ऐसी मान्यता है कि यह मंदिर उत्तराखंड के चार धामों की रक्षा करता है। हर साल नवरात्रि के अवसर पर यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और हजारों श्रद्धालु देवी के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं।

चमत्कारी स्वरूप परिवर्तन

इस मंदिर से जुड़ा एक सबसे बड़ा रहस्य और चमत्कार यह है कि यहां स्थापित देवी की मूर्ति दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती है। कहा जाता है कि सुबह के समय मां की मूर्ति एक कन्या के रूप में दिखाई देती है, दिन के समय वह एक युवती का रूप धारण कर लेती है, जबकि शाम के समय यह प्रतिमा एक वृद्धा के रूप में नजर आती है। यह अद्भुत परिवर्तन भक्तों के लिए गहरी आस्था और विस्मय का विषय है।

मूर्ति स्थानांतरण और 2013 की आपदा

धारी देवी मंदिर से जुड़ी एक महत्वपूर्ण और दुखद घटना 2013 की केदारनाथ आपदा है। तत्कालीन श्रीनगर जल विद्युत परियोजना के निर्माण के कारण मंदिर डूब क्षेत्र में आ रहा था, जिसके चलते देवी की प्रतिमा को उसके मूल स्थान से हटाया जाना था। 16 जून 2013 को शाम 6:30 बजे धारी देवी की प्रतिमा को अस्थायी रूप से स्थानांतरित किया गया था। कुछ ही घंटों बाद, उसी रात 17 जून 2013 को उत्तराखंड में भीषण जल प्रलय आया, जिसने केदारनाथ सहित पूरे क्षेत्र में भारी तबाही मचाई।

कई लोग इस आपदा को धारी देवी की मूर्ति के स्थानांतरण से जोड़कर देखते हैं, यह मानते हुए कि यह देवी का प्रकोप था।
लगभग नौ वर्षों तक, देवी की प्रतिमा एक अस्थायी स्थान पर विराजमान रही। जनवरी 2023 में, पूरे विधि-विधान के साथ शतचंडी यज्ञ के उपरांत, माँ धारी देवी की मूर्ति को नए और स्थायी मंदिर में उनके मूल स्थान पर पुनः स्थापित किया गया। यह घटना उत्तराखंड के लोगों की देवी के प्रति अटूट आस्था और विश्वास को दर्शाती है।

धारी देवी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह भक्तों को शांति, शक्ति और एक अलौकिक अनुभव प्रदान करता है।

1 Comment

1 Comment

  1. Pingback: ▷वृंदावन: बांके बिहारी मंदिर के अलावा भी ये हैं दर्शनीय स्थान — Safar News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Trending