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Strawberry Farming: स्ट्रॉबेरी की खेती कैसे करें? जानें

Strawberry Farming: स्ट्रॉबेरी अपने मनमोहक स्वाद और आकर्षक रंग के कारण, दुनिया भर में सबसे लोकप्रिय फलों में से एक है। इसकी बढ़ती मांग ने इसे किसानों के लिए एक लाभदायक कृषि उद्यम बना दिया है। भारत में भी, स्ट्रॉबेरी की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ सर्दियाँ पर्याप्त ठंडी होती हैं। यह लेख स्ट्रॉबेरी की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्रदान करेगा, जिससे इच्छुक किसानों को इस उद्यम में सफलता प्राप्त करने में मदद मिल सके।
जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएं
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। इसके पौधों को सर्दियों में पर्याप्त ठंड (लगभग 10-15°C) और गर्मियों में मध्यम तापमान (20-30°C) पसंद होता है। पाला पड़ने की स्थिति में पौधों को बचाने के लिए उचित उपाय करना महत्वपूर्ण है।
मिट्टी की बात करें तो, स्ट्रॉबेरी के लिए अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए। उच्च कार्बनिक पदार्थ वाली मिट्टी पौधों के विकास और उपज के लिए आदर्श होती है। खेत की तैयारी के समय, मिट्टी को अच्छी तरह से जोतकर समतल कर लेना चाहिए और उसमें पर्याप्त मात्रा में सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिलाना चाहिए।
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किस्मों का चुनाव
स्ट्रॉबेरी की कई किस्में उपलब्ध हैं, और सही किस्म का चुनाव स्थानीय जलवायु परिस्थितियों और बाजार की मांग पर निर्भर करता है। भारत में कुछ लोकप्रिय किस्में फेयरफॉक्स (Fairfax), चंडलर (Chandler), स्वीट चार्ली (Sweet Charlie), कैमारोसा (Camarosa) और ओफरा (Ofra) हैं। प्रत्येक किस्म की अपनी विशिष्टताएँ होती हैं, जैसे फल का आकार, रंग, स्वाद और पकने का समय। अपनी नर्सरी या कृषि विश्वविद्यालय से सलाह लेकर सबसे उपयुक्त किस्म का चयन करें।
रोपण का समय और विधि
भारत में स्ट्रॉबेरी के रोपण का सबसे अच्छा समय सितंबर से नवंबर के बीच होता है, जब मौसम ठंडा होना शुरू होता है। पौधों को आमतौर पर क्यारियों पर लगाया जाता है, जिनकी ऊँचाई 15-20 सेमी और चौड़ाई 60-70 सेमी होनी चाहिए। पौधों को एक-दूसरे से 30 सेमी की दूरी पर और पंक्तियों के बीच 60 सेमी की दूरी पर लगाना चाहिए। रोपण से पहले, यह सुनिश्चित करें कि पौधों की जड़ें स्वस्थ हों।
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सिंचाई और पोषण प्रबंधन
स्ट्रॉबेरी के पौधों को नियमित और पर्याप्त सिंचाई की आवश्यकता होती है, खासकर फल लगने और पकने के दौरान। ड्रिप सिंचाई प्रणाली पानी के कुशल उपयोग के लिए सबसे उपयुक्त है। मिट्टी में नमी बनाए रखना महत्वपूर्ण है, लेकिन अत्यधिक पानी से बचना चाहिए क्योंकि इससे जड़ सड़न हो सकती है।
पौधों के स्वस्थ विकास और अच्छी उपज के लिए संतुलित पोषण आवश्यक है। रोपण के समय और फिर फूल आने और फल लगने की अवस्था में उचित मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम युक्त खाद डालनी चाहिए। सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए आवश्यकतानुसार सूक्ष्म पोषक तत्व भी दिए जा सकते हैं। मिट्टी परीक्षण के आधार पर खाद की मात्रा निर्धारित करना सबसे अच्छा तरीका है।
खरपतवार और कीट-रोग नियंत्रण
खरपतवार स्ट्रॉबेरी के पौधों के साथ पोषक तत्वों और पानी के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए हाथ से निराई या मल्चिंग का उपयोग किया जा सकता है। मल्चिंग मिट्टी की नमी बनाए रखने और खरपतवारों को दबाने में भी मदद करती है।
स्ट्रॉबेरी के पौधों पर कीटों और बीमारियों का हमला हो सकता है। एफिड्स, स्पाइडर माइट्स और स्लग कुछ सामान्य कीट हैं, जबकि पाउडरी मिल्ड्यू, एन्थ्रेक्नोज और फाइटऑफथोरा क्राउन रोट सामान्य बीमारियाँ हैं। नियमित रूप से पौधों का निरीक्षण करें और समस्या का पता चलने पर तुरंत जैविक या रासायनिक नियंत्रण उपायों का उपयोग करें। एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) तकनीकों को अपनाना हमेशा बेहतर होता है।
कटाई और उपज
स्ट्रॉबेरी के फल आमतौर पर रोपण के 2-3 महीने बाद पकने शुरू हो जाते हैं। फलों को तब काटना चाहिए जब वे पूरी तरह से लाल हो जाएं और चमकदार दिखें। कटाई सुबह के समय करनी चाहिए, जब मौसम ठंडा हो, और फलों को धीरे से डंठल सहित तोड़ना चाहिए। कटे हुए फलों को तुरंत पैक करके ठंडी जगह पर रखना चाहिए ताकि उनकी शेल्फ लाइफ बढ़ सके।
उचित देखभाल और प्रबंधन के साथ, प्रति एकड़ 5-10 टन तक उपज प्राप्त की जा सकती है, जो किस्म और कृषि पद्धतियों पर निर्भर करता है। स्ट्रॉबेरी की खेती एक धैर्य और समर्पण का काम है, लेकिन सही जानकारी और कड़ी मेहनत से यह निश्चित रूप से एक सफल और लाभदायक कृषि उद्यम बन सकता है।
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