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Sanjeev Kumar in Sholay: ठाकुर के रोल की दिलचस्प कहानी

SHOLAY: अगर आप सिनेमा के दीवाने हैं, तो “शोले” Sholay फिल्म का नाम सुनते ही आंखों के सामने गब्बर की हंसी, जय-वीरू की दोस्ती और ठाकुर साहब का प्रतिशोध तैर जाता है। इस फिल्म में हर किरदार ने अपनी अमिट छाप छोड़ी, लेकिन जिस किरदार को सबसे ज्यादा गहराई से निभाया गया, वो थे ठाकुर बलदेव सिंह, और उसे जीवंत किया संजीव कुमार ने।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि संजीव कुमार को “शोले” Sholay में ठाकुर का रोल कैसे मिला? इसके पीछे की कहानी फिल्म जितनी ही दिलचस्प है। आइए जानते हैं इस ब्लॉग पोस्ट में, संजीव कुमार और शोले से जुड़ी एक बेहद खास दास्तां।
संजीव कुमार — वो कलाकार जो किरदार बन जाता था
संजीव कुमार, जिनका असली नाम हरिहर जरीवाला था, एक ऐसे अभिनेता थे जो हर रोल को आत्मा से निभाते थे। उन्होंने बहुत कम उम्र में ही उम्रदराज किरदार निभाना शुरू कर दिया था। “कोशिश”, “आंधी”, “त्रिशूल”, “नया दिन नई रात” जैसी फिल्मों में उन्होंने जो अभिनय दिखाया, वो क्लासिक बन गया।
संजीव कुमार को कभी शोहरत या ग्लैमर की परवाह नहीं थी। उन्हें सिर्फ अच्छा किरदार चाहिए होता था — और ठाकुर बलदेव सिंह ऐसा ही एक किरदार था।
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शोले की स्क्रिप्ट और एक अहम किरदार
जब सलीम-जावेद ने शोले Sholay की स्क्रिप्ट लिखी, तो वो चाहते थे कि ठाकुर बलदेव सिंह एक ऐसा इंसान हो जो शांत, गंभीर और भीतर से टूटा हुआ हो — लेकिन उसके भीतर प्रतिशोध की आग हो। ऐसा रोल किसी ‘हीरो टाइप’ एक्टर के बस का नहीं था। इसे निभाने के लिए चाहिए था एक ऐसा कलाकार जो अभिनय में डूबकर दर्शकों की आत्मा तक पहुंच सके।
पहले दिलीप कुमार को ऑफर किया गया था यह रोल, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। इसके बाद कुछ और नामों पर विचार हुआ। फिर आया संजीव कुमार का नाम।
क्यों चुना गया संजीव कुमार को?
सलीम-जावेद पहले से ही संजीव कुमार के अभिनय के कायल थे। “कोशिश” में उन्होंने बिना बोले भी भावनाओं को जिस तरह से पर्दे पर उतारा, वही हुनर ठाकुर के किरदार में चाहिए था।
जब रमेश सिप्पी को संजीव कुमार का स्क्रीन टेस्ट दिखाया गया, तो उनके मन का संशय दूर हो गया। और इस तरह, संजीव कुमार फाइनल हो गए ‘ठाकुर बलदेव सिंह’ के रोल के लिए।
ठाकुर के किरदार में जान डालना
संजीव कुमार ने जब यह रोल स्वीकार किया, तब उन्हें मालूम था कि यह रोल शारीरिक अभिनय से ज़्यादा आंखों और चेहरे के भावों से बोलेगा। ठाकुर के हाथ नहीं होते, लेकिन उसका दर्द, उसका गुस्सा, उसका संतुलन — सब कुछ दर्शकों को महसूस कराना था।
और यही किया संजीव कुमार ने। उन्होंने सिर्फ अभिनय नहीं किया, उन्होंने ठाकुर को जिया।
शोले Sholay के उस सीन को कौन भूल सकता है जब ठाकुर कहता है:
“ये हाथ नहीं… इंसाफ का तराजू हैं…”
उनकी आवाज़ में दर्द, चेहरों पर आग, और आंखों में कानून के प्रति निष्ठा — यह सब उन्होंने इतनी सच्चाई से दिखाया कि किरदार अमर हो गया।
शूटिंग के दौरान चुनौतियाँ
शोले Sholay की शूटिंग गर्मी और लंबे शेड्यूल में हो रही थी। रामनगर (कर्नाटक) के पास बने उस वीरान गांव में शूटिंग के दौरान कई बार टेक्स दोहराए जाते। लेकिन संजीव कुमार का संयम और समर्पण हमेशा एक जैसा रहता।
जो सीन उन्होंने बिना हाथों के किए, वो खास तकनीक और रीहर्सल की मांग करते थे। उस दौर में ना आज जैसी CGI थी, ना डिजिटल इफेक्ट्स। फिर भी उन्होंने अपने अभिनय से ऐसे सीन किए कि लोग भूल गए कि वह एक्टिंग देख रहे हैं — सबको वही ठाकुर नजर आया जिसने अपना सब कुछ गब्बर से खोया है।
फिल्म की रिलीज़ और दर्शकों की दीवानगी
15 अगस्त 1975 को जब शोले Sholay रिलीज़ हुई, तो पूरे देश में तहलका मच गया। दर्शकों ने जय-वीरू की दोस्ती, बसंती का चुलबुलापन, गब्बर की क्रूरता और ठाकुर का आक्रोश सब कुछ अपने दिल में बसा लिया।
संजीव कुमार का शांत लेकिन मजबूत अभिनय लोगों के मन में बस गया। वो ‘हीरो’ नहीं थे, लेकिन फिर भी लोगों के दिलों पर राज करने लगे।
एक विरासत जो अमर हो गई
संजीव कुमार ने अपने छोटे से जीवन में इतनी अद्भुत फिल्में कीं कि आज भी सिनेमा के छात्र उन्हें देखकर अभिनय सीखते हैं। उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि वह ‘सुपरस्टार’ हैं — लेकिन हर बार पर्दे पर उन्होंने साबित किया कि असल स्टार वही होता है जो अपने किरदार से बड़ा बन जाए।
“शोले” Sholay का ठाकुर आज भी जब याद किया जाता है, तो दर्शक सिर्फ एक नाम बोलते हैं — संजीव कुमार।
अंत में…
संजीव कुमार को “शोले” Sholay में ठाकुर का रोल किसी सौभाग्य से नहीं, उनकी काबिलियत और सच्चे समर्पण से मिला था। आज भले ही वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका यह किरदार सदा जीवित रहेगा।
तो अगली बार जब आप शोले देखें और ठाकुर की आंखों में आंसू और आग देखें — तो याद रखिए, वो सिर्फ एक्टिंग नहीं थी, वो संजीव कुमार की आत्मा थी।
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