Connect with us

Latest News

दिल्ली मुंबई की पार्टियों की शोभा बढ़ा रही अमरोहा की मुरैया

Published

on

PHOTO 2025 04 26 15 33 26 e1748166811771

Amroha: पारंपरिक खेती को छोड़ अमरोहा जनपद के गांव आदमपुर में किसान ने आवारा पशुओं से परेशान होकर करीब 6 हेक्टेयर जमीन में नये प्रयोग के साथ मुरैया की खेती शुरू की है। जिसे कम लागत से उगाकर अधिक मुनाफा कमा रहे है। आदमपुर निवासी किसान डॉ मुंसरीफ अहमद का कहना है कि हम आवारा पशुओं के आतंक से बहुत परेशान थे क्योंकि पशु हमारी फसल चट कर जाते और फसल में लगाई गई लागत भी वापस नहीं लौटती थी।

इसलिए हम एक ऐसी फसल की तलाश में थे जिसे पशु नुकसान न पहुंचा सके। उनका कहना है कि तीन साल पहले वह जनपद संभल के गांव आडोल गए थे। जहां पर मुरैया की खेती को होता देखा और इसके बारे में सारी जानकारी हासिल की। इसके बाद शुरू में करीब बीस बीघे में इसकी खेती की तथा अब करीब 90 बीघे जमीन में इस फसल को लगा रखा है जो इस समय पत्तियों से लदी टहनियों की कटिंग हो रही है।

मुरैया पौधे की कीमत तथा रोपाई का तरीका

इसके पेड़ की कीमत क्वालिटी तथा साइज के हिसाब से तय होती है ये 13 रुपए से लेकर 26 रूपये प्रति पेड़ तक मिलता है इसके लगाने का सही समय अप्रैल से लेकर जून तक का होता है पेड़ से पेड़ की दूरी करीब 5 फीट की होती है इसको लगाते समय गोबर की खाद तथा दवाई का प्रयोग किया जाता है। 5 फीट की दूरी होने पर इसमें अन्य फसल भी उगाई जा सकता है। इसमें पौधा रोपाई से लेकर तैयार होने तक इसकी नराई- गुड़ाई तथा पानी का ध्यान रखा जाता है।

फसल को तैयार करने में अन्य फसलों के मुकाबले बहुत कम खर्च आता है फसल में ना तो किसी जंगली पशु और ना ही छुट्टा पशुओं का कोई नुकसान होता है कम खर्चे में अधिक मुनाफा मिलता है। कम रेट होने पर भी करीब 30 से 35 हजार रुपए प्रति बीघा का रेट मिल जाता है और अच्छे रेट होने पर 50 से 60 हजार रूपये तक प्रति बीघा तक बिक जाती है।

टहनियां करीब दो सप्ताह तक हरी भरी रहती है


इसको बेचने में आसानी रहती है क्योंकि इसकी मंडी गाज़ीपुर दिल्ली में लगती है इसलिए वहां से खरीदार आकर हमारी खड़ी फसल को खरीद लेते हैं और उसकी पत्तियों से लदी टहनियों की कटिंग कराकर ले जाते हैं। इसलिए यह आसानी से बिक भी जाती है मुरैया का प्रयोग शादी के मंडप व गेट सजाने में तथा अन्य प्रोग्रामों में भी किया जाता है। क्योंकि इसकी पत्तियों से लदी टहनियां करीब दो सप्ताह तक हरी भरी रहती है और देखने में प्राकृतिक रूप में दिखाई देती है।

मुरैया की फसल से लंबे समय तक होती आमदनी

ढवारसी। पौधे की रोपाई करने बाद इसे अच्छी तरह से तैयार होने में करीब तीन साल लगते हैं और इसके बाद इस झाड़ीनुमा पौधे की टहनियों को काटकर बाजार भेजा जाता है पहली कटिंग करने के बाद इसे साल में दो बार काटा जाता है। मुरैया के पौधे को एक बार लगाने बाद इससे करीब 10 से लेकर 15 साल तक फसल ली जा सकती है।

टहनियां करीब दो सप्ताह तक हरी भरी रहती है


इसको बेचने में आसानी रहती है क्योंकि इसकी मंडी गाज़ीपुर दिल्ली में लगती है इसलिए वहां से खरीदार आकर हमारी खड़ी फसल को खरीद लेते हैं और उसकी पत्तियों से लदी टहनियों की कटिंग कराकर ले जाते हैं। इसलिए यह आसानी से बिक भी जाती है मुरैया का प्रयोग शादी के मंडप व गेट सजाने में तथा अन्य प्रोग्रामों में भी किया जाता है। क्योंकि इसकी पत्तियों से लदी टहनियां करीब दो सप्ताह तक हरी भरी रहती है और देखने में प्राकृतिक रूप में दिखाई देती है।

मुरैया की फसल से लंबे समय तक होती आमदनी

ढवारसी। पौधे की रोपाई करने बाद इसे अच्छी तरह से तैयार होने में करीब तीन साल लगते हैं और इसके बाद इस झाड़ीनुमा पौधे की टहनियों को काटकर बाजार भेजा जाता है पहली कटिंग करने के बाद इसे साल में दो बार काटा जाता है। मुरैया के पौधे को एक बार लगाने बाद इससे करीब 10 से लेकर 15 साल तक फसल ली जा सकती है।

Trending