धर्म
हर की पौड़ी से गंगाजल ले जाने की विधि और शुभ मुहूर्त

kawad yatra: हर की पौड़ी हरिद्वार में गंगा नदी का एक पवित्र घाट है। यह लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। यहाँ से गंगाजल भरकर ले जाना एक अत्यंत शुभ कार्य माना जाता है, जिसे भक्त अपने घरों में पूजा-पाठ और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के लिए प्रयोग करते हैं। हालाँकि, इस पवित्र जल को भरने और ले जाने के कुछ नियम और परंपराएँ हैं, जिनका पालन करना महत्वपूर्ण है। इस लेख में हम इन नियमों पर विस्तार से चर्चा करेंगे और यह भी जानेंगे कि हर की पौड़ी से जल लेकर चलने का सबसे सही समय कौन सा है।
हर की पौड़ी और गंगाजल का महत्व
हर की पौड़ी का शाब्दिक अर्थ है “हरि (भगवान विष्णु) के चरण”। ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान अमृत की बूंदें यहीं गिरी थीं, जिससे यह स्थान अत्यंत पवित्र हो गया। गंगा नदी, जिसे माँ गंगा के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक देवी के रूप में पूजी जाती हैं। उनका जल मोक्षदायिनी और पावन माना जाता है। गंगाजल का उपयोग विभिन्न धार्मिक कार्यों जैसे अभिषेक, शुद्धि, श्राद्ध कर्म और पूजा-पाठ में किया जाता है। इसे घर में रखने से सुख-शांति और समृद्धि आती है, ऐसी भी मान्यता है।
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जल भरने के सामान्य नियम और सावधानियाँ
हर की पौड़ी से जल भरते समय कुछ सामान्य बातों का ध्यान रखना चाहिए।
पवित्रता और शुचिता: जल भरने से पहले स्वयं को स्वच्छ और पवित्र करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। जूते-चप्पल उतारकर ही घाट पर जाएँ।
पात्र का चुनाव: जल भरने के लिए शुद्ध और पवित्र पात्र का उपयोग करें। ताँबे का लोटा या कलश, पीतल का पात्र, या मिट्टी का घड़ा सबसे उत्तम माने जाते हैं। प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग करने से बचें, हालाँकि आजकल सुविधा के लिए इनका प्रचलन बढ़ गया है। यदि प्लास्टिक का उपयोग कर रहे हैं, तो सुनिश्चित करें कि वे नई और साफ हों।
श्रद्धा और भक्ति: जल भरते समय मन में श्रद्धा और भक्ति का भाव रखें। किसी भी प्रकार की नकारात्मकता या अश्रद्धा से बचें।
गंगा मैया से प्रार्थना: जल भरने से पहले और बाद में गंगा मैया से आशीर्वाद और कृपा की प्रार्थना करें। यह आपके कार्य को अधिक फलदायी बनाता है।
पर्यावरण का सम्मान: गंगा घाट पर स्वच्छता बनाए रखने में सहयोग करें। किसी भी प्रकार का कचरा या अपशिष्ट नदी में न डालें।
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जल लेकर चलने के नियम और सावधानियाँ
गंगाजल को घर ले जाते समय भी कुछ नियमों का पालन करना चाहिए।
सम्मानपूर्वक ले जाना: गंगाजल को सदैव सम्मानपूर्वक ले जाना चाहिए। इसे कभी भी पैरों से न छुएँ और न ही किसी अपवित्र स्थान पर रखें।
ऊपर रखना: यात्रा के दौरान गंगाजल के पात्र को सदैव सिर से ऊपर या कम से कम कमर से ऊपर रखें। इसे ज़मीन पर रखने से बचें, जब तक कि नितांत आवश्यक न हो।
सुरक्षा और स्थिरता: सुनिश्चित करें कि पात्र अच्छी तरह से बंद हो ताकि जल छलक न जाए। वाहन में रखते समय उसे स्थिर जगह पर रखें ताकि वह गिरे नहीं।
बातचीत और व्यवहार: यात्रा के दौरान सकारात्मक और शांत रहें। अनावश्यक शोरगुल या अपशब्दों का प्रयोग करने से बचें।
सात्विक भोजन: यदि लंबी यात्रा कर रहे हैं, तो सात्विक भोजन ग्रहण करें। मांस-मदिरा आदि का सेवन पूरी तरह वर्जित है।
किस समय जल लेकर चलना सही रहता है?
यह प्रश्न अक्सर श्रद्धालुओं के मन में उठता है कि हर की पौड़ी से जल लेकर चलने का सबसे सही समय कौन सा है। ज्योतिष और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुछ विशेष समय अत्यधिक शुभ माने जाते हैं।
ब्रह्म मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त सूर्योदय से लगभग डेढ़ घंटे पहले का समय होता है। इसे देवताओं का समय माना जाता है और इस दौरान की गई कोई भी धार्मिक क्रिया अत्यंत फलदायी होती है। यदि संभव हो, तो ब्रह्म मुहूर्त में जल भरकर चलना बहुत शुभ माना जाता है। इस समय वातावरण शांत और पवित्र होता है, जिससे मन भी एकाग्र रहता है।
सूर्योदय के तुरंत बाद: सूर्योदय के तुरंत बाद का समय भी शुभ माना जाता है। इस समय वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। भीड़ भी कम होती है, जिससे आप शांति से जल भर सकते हैं।
अभिजीत मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त दिन का एक शुभ मुहूर्त होता है, जो लगभग दोपहर 12 बजे के आसपास आता है। इस मुहूर्त में किए गए कार्य सफल होते हैं। यदि आप दिन में जल भर रहे हैं, तो अभिजीत मुहूर्त का चयन कर सकते हैं। हालाँकि, हरिद्वार में दिन के समय भीड़ अधिक होती है, इसलिए यह कम व्यावहारिक हो सकता है।
शुभ नक्षत्र और योग: पंचांग देखकर शुभ नक्षत्र और योग में जल भरना और चलना भी श्रेष्ठ माना जाता है। विशेष रूप से गुरु पुष्य योग, रवि पुष्य योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग में जल ले जाना अत्यंत लाभकारी होता है। इन योगों की जानकारी किसी जानकार पंडित या ज्योतिष से प्राप्त की जा सकती है।
सोमवार और गुरुवार: सोमवार भगवान शिव का दिन है और गुरुवार भगवान विष्णु का। इन दिनों में गंगाजल ले जाना विशेष फलदायी माना जाता है, खासकर यदि आप इसे शिव अभिषेक या विष्णु पूजा के लिए ले जा रहे हों।
भीड़ से बचें: धार्मिक महत्व के अलावा, व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी समय का चुनाव महत्वपूर्ण है। सुबह जल्दी या देर शाम को भीड़ कम होती है, जिससे आप शांति और सुविधा से जल भर सकते हैं और यात्रा भी सुगम रहती है। त्योहारों और विशेष स्नान पर्वों पर अत्यधिक भीड़ होती है, जिससे बचना चाहिए यदि आपका उद्देश्य केवल जल भरकर ले जाना है।
किस समय जल लेकर चलने से बचना चाहिए?
कुछ समय ऐसे भी होते हैं जिनसे बचना चाहिए।
राहुकाल: राहुकाल को अशुभ समय माना जाता है और इस दौरान कोई भी नया या शुभ कार्य शुरू करने से बचना चाहिए। दैनिक पंचांग में राहुकाल का समय दिया होता है।
शाम का अत्यधिक समय (अंधेरा होने के बाद): अंधेरा होने के बाद गंगा घाट पर भीड़ कम हो जाती है, लेकिन सुरक्षा और सुविधा की दृष्टि से इस समय यात्रा शुरू करने से बचना चाहिए।
अशुभ योग और नक्षत्र: पंचांग में बताए गए अशुभ योग और नक्षत्रों में यात्रा करने से बचना चाहिए।
हर की पौड़ी से गंगाजल भरकर ले जाना एक पवित्र और पुण्यदायी कार्य है। इस कार्य को करते समय नियमों और परंपराओं का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। जल भरने से पहले स्वयं की पवित्रता, पात्र का चयन, और मन में श्रद्धा का भाव रखना आवश्यक है। जल को घर ले जाते समय भी उसका सम्मान करना और उसे सुरक्षित रखना चाहिए। जहाँ तक जल लेकर चलने के समय का सवाल है, ब्रह्म मुहूर्त, सूर्योदय के तुरंत बाद, अभिजीत मुहूर्त, और शुभ नक्षत्रों/योगों का चयन सबसे उत्तम माना जाता है।
व्यावहारिक रूप से भीड़ से बचने के लिए सुबह जल्दी का समय सर्वोत्तम है। इन सभी बातों का ध्यान रखकर आप अपनी इस पवित्र यात्रा को सफल और फलदायी बना सकते हैं और माँ गंगा का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
यह लेख सामान्य जानकारी पर आधारित है। aksafar news इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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