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बदलती ज़िंदगी और बदलते रिश्ते: क्या हम वाकई खुश हैं?

बदलती ज़िंदगी और बदलते रिश्ते: आज की तेज़ रफ्तार दुनिया में हर कोई दौड़ रहा है। सुबह से लेकर रात तक हमारी दिनचर्या इतनी व्यस्त हो गई है कि हमें खुद के लिए भी वक्त निकालना मुश्किल हो जाता है। नौकरी, बिज़नेस, पैसा कमाने की होड़ और सोशल मीडिया की चमक-दमक ने हमें एक ऐसी जाल में फंसा दिया है, जहाँ रिश्ते और अपनापन धीरे-धीरे खोते जा रहे हैं। सवाल यह उठता है कि क्या हम सच में खुश हैं या सिर्फ दिखावा कर रहे हैं? बदलती ज़िंदगी और बदलते रिश्ते
पहले और आज का फर्क
कुछ साल पहले की ज़िंदगी याद कीजिए।
शाम होते ही लोग छतों पर बैठकर परिवार से बातें करते थे।
बच्चे गली-मोहल्ले में क्रिकेट, कबड्डी और पिट्ठू जैसे खेल खेलते थे।
त्योहार आते ही पूरा मोहल्ला एक परिवार की तरह इकट्ठा होता था।
लेकिन आज की तस्वीर बिल्कुल बदल चुकी है।
मोबाइल ने हमारी बातें छीन लीं,
काम ने हमारा वक्त छीन लिया,
और दौड़-भाग ने हमारे रिश्ते छीन लिए।
अब बच्चे घर में मोबाइल गेम्स में खोए रहते हैं, बड़े लोग सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करते रहते हैं और परिवार के बीच हंसी-ठिठोली धीरे-धीरे कम होती जा रही है। बदलती ज़िंदगी और बदलते रिश्ते
क्या पैसा ही खुशी है?
आज इंसान पैसा तो खूब कमा रहा है लेकिन सुकून और मुस्कान कहीं खो गई है। क्या हम सिर्फ भौतिक सुख-सुविधाओं से खुश हो सकते हैं?
सोचिए, अगर आपके पास करोड़ों रुपये हों लेकिन परिवार और दोस्त न हों, तो क्या वह खुशी टिक पाएगी?
सच्चाई यह है कि रिश्ते ही असली दौलत हैं।
एक छोटी सी सीख देती कहानी
एक बूढ़ा आदमी पार्क की बेंच पर बैठा था। उसके बेटे ने पूछा –
“पापा, आपके जमाने में तो सुविधाएं बहुत कम थीं, आप लोग कैसे खुश रहते थे?”
बूढ़े ने मुस्कुराकर जवाब दिया –
“बेटा, हमारे पास सुविधाएं कम थीं लेकिन रिश्ते और अपनापन बहुत था। अब तुम्हारे पास सबकुछ है, लेकिन मुस्कान बहुत कम है।”
यह जवाब आज हर किसी को सोचने पर मजबूर कर देता है। बदलती ज़िंदगी और बदलते रिश्ते
मोबाइल फोन हमारी ज़िंदगी का अहम हिस्सा
बदलाव की शुरुआत हमसे
अगर हम चाहें तो अपनी ज़िंदगी को फिर से खुशनुमा बना सकते हैं। इसके लिए बस थोड़े-से कदम उठाने होंगे:
दिन में कम से कम 30 मिनट अपने परिवार के साथ बैठें।
हफ्ते में एक बार दोस्तों से ज़रूर मिलें, सिर्फ बातें करने के लिए।
त्योहारों और खास मौकों पर मोबाइल और सोशल मीडिया से दूर रहकर रिश्तों को समय दें।
मोबाइल नोटिफिकेशन से ज्यादा इंसानों की आवाज़ सुनने की आदत डालें।
असली खुशी कहाँ है?
सोशल मीडिया पर लाइक्स और फॉलोअर्स बढ़ाने से खुशी नहीं मिलती। असली खुशी तब मिलती है जब आपका परिवार आपके साथ बैठकर हंसी-ठिठोली करे, जब दोस्त बिना किसी मतलब के आपका हालचाल पूछें और जब आपके माता-पिता आपको देखकर गर्व महसूस करें। बदलती ज़िंदगी और बदलते रिश्ते
ज़िंदगी आसान है, अगर हम उसे रिश्तों के साथ जीना सीख लें। पैसा, शोहरत और कामयाबी सब समय के साथ घटते-बढ़ते रहेंगे, लेकिन रिश्ते और अपनापन – यही हमारी असली पहचान हैं।
अगर यह आर्टिकल आपको अच्छा लगा तो इसे अपने दोस्तों और परिवार तक ज़रूर पहुँचाइए। हो सकता है, आपकी वजह से किसी की मुस्कान लौट आए। बदलती ज़िंदगी और बदलते रिश्ते
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