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धड़क 2: एक प्रेम कहानी से कहीं ज़्यादा, movie review

movie review: धड़क 2, 2018 की फिल्म धड़क का सीक्वल है। जहाँ पहली फिल्म मराठी फिल्म ‘सैराट’ का रीमेक थी, वहीं ‘धड़क 2’ 2018 की तमिल फिल्म ‘परियेरुम पेरुमल’ से प्रेरित है। शाज़िया इक़बाल द्वारा निर्देशित यह फिल्म, करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शंस के बैनर तले बनी है और इसमें सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी मुख्य भूमिकाओं में हैं। धड़क 2 एक प्रेम कहानी के माध्यम से भारतीय समाज में आज भी व्याप्त जातिगत असमानता के संवेदनशील मुद्दे को उठाती है।
कहानी और विषयवस्तु
फिल्म की कहानी एक दलित छात्र अर्जुन (सिद्धांत चतुर्वेदी) और उच्च जाति की लड़की पंखुड़ी (तृप्ति डिमरी) के बीच पनपे प्रेम पर आधारित है। फिल्म यह दर्शाती है कि कैसे आज भी एक प्रेम कहानी को जाति की दीवारों को तोड़ना कितना मुश्किल है। फिल्म जातिवाद के क्रूर और असहज सच को दिखाती है, जो आधुनिक शहरों में भी छिपा हुआ है। फिल्म धड़क 2 का उद्देश्य दर्शकों को केवल मनोरंजन देना नहीं, बल्कि उन्हें सोचने पर मजबूर करना है।
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अभिनय
सिद्धांत चतुर्वेदी ने अर्जुन के किरदार में बेहतरीन प्रदर्शन किया है। एक दलित युवक के दर्द, अपमान और आक्रोश को उन्होंने अपनी आंखों और अभिनय से बखूबी दर्शाया है। कई समीक्षकों ने उनके अभिनय को उनके करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन बताया है। तृप्ति डिमरी ने भी पंखुड़ी के किरदार को संवेदनशीलता के साथ निभाया है। हालांकि, कुछ समीक्षकों का मानना है कि उनका किरदार कई जगह थोड़ा कमज़ोर लिखा गया था, लेकिन तृप्ति ने अपनी एक्टिंग से उस कमी को भरने की कोशिश की है। विपिन शर्मा, जो सिद्धांत के पिता की भूमिका में हैं, ने भी अपने छोटे से रोल में शानदार काम किया है।
निर्देशन और लेखन
शाज़िया इक़बाल ने एक संवेदनशील विषय को चुना है और उसे पर्दे पर लाने का एक सराहनीय प्रयास किया है। फिल्म का निर्देशन कई जगह प्रभावी है, खासकर जब यह अर्जुन के संघर्ष को दिखाती है। हालांकि, कुछ समीक्षकों के अनुसार, फिल्म का लेखन और स्क्रीनप्ले थोड़ा कमज़ोर रहा। फिल्म का पहला हाफ प्रेम कहानी को स्थापित करने में निकल जाता है, और कई जगह कहानी अपनी पूरी गहराई के साथ दर्शकों तक नहीं पहुंच पाती। फिल्म एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाती है, लेकिन उसे पूरी ताकत से पकड़ नहीं पाती, जिससे कुछ दर्शक निराश हो सकते हैं।
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संगीत
फिल्म का संगीत एक मिला-जुला अनुभव देता है। जहां कुछ गाने और बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है, वहीं कुछ समीक्षकों का मानना है कि यह पहली ‘धड़क’ की तरह यादगार नहीं है। पहली फिल्म के संगीत ने दर्शकों के दिलों को छुआ था, जिसकी कमी इस फिल्म में महसूस होती है।
‘धड़क 2’ एक ऐसी फिल्म है जो जातिवाद जैसे गंभीर मुद्दे को उठाने का साहस करती है। हालांकि, कुछ कमज़ोरियों के बावजूद, सिद्धांत चतुर्वेदी के दमदार अभिनय और फिल्म के सामाजिक संदेश के लिए इसे एक बार देखा जा सकता है। यह फिल्म आपको असहज कर सकती है और शायद यही इसका असली उद्देश्य है। समाज में चल रही असमानता पर एक संवाद शुरू करना।
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