Connect with us

entertainment

मूवी रिव्यू: सितारे जमीन पर movie review

Published

on

movie review

movie review: निर्देशक आर.एस. प्रसन्ना दक्षिण भारतीय सिनेमा में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं और बॉलीवुड के लिए भी वह कोई नया नाम नहीं हैं। 2017 में उन्होंने अपनी फिल्म ‘शुभ मंगल सावधान’ से दर्शकों का दिल जीता था। इस फिल्म में उन्होंने इरेक्टाइल डिस्फंक्शन जैसे संवेदनशील विषय को बड़े ही हल्के-फुल्के और मनोरंजक अंदाज़ में पेश किया, जिसने दर्शकों और समीक्षकों दोनों को प्रभावित किया। अब वह एक बार फिर एक और चुनौतीपूर्ण विषय के साथ सामने आए हैं: ‘सितारे ज़मीन पर’, जिसमें वह न्यूरो-डायवर्जेंट (विशेष रूप से डाउन सिंड्रोम से जूझ रहे) युवाओं की कहानी कह रहे हैं।

यह फिल्म भले ही स्पैनिश फिल्म ‘चैंपियंस’ का रूपांतरण है, लेकिन जिन दर्शकों ने मूल फिल्म नहीं देखी है, उनके लिए यह एक बिल्कुल नया और भावनात्मक अनुभव साबित हो सकती है। लेखिका दिव्य निधि शर्मा ने अपनी स्क्रिप्ट का भारतीयकरण बेहद बारीकी और संवेदनशीलता के साथ किया है, जिससे कहानी भारतीय परिवेश में सहज रूप से घुलमिल जाती है। movie review

यह भी पढ़ें:- Abhishek Bachchan: नई फिल्म लेकर आ रहे अभिषेक बच्चन मजेदार है पोस्टर

कास्टिंग की ख़ासियत और कलाकारों की मासूमियत

इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत इसकी कास्टिंग है। निर्देशक ने असल ज़िंदगी के डाउन सिंड्रोम से पीड़ित दस वयस्कों को बतौर अभिनेता लिया है। निसंदेह, उनसे अभिनय करवाना निर्देशक के लिए एक बड़ा टास्क रहा होगा। हालांकि, उनकी मासूमियत, नटखटपन और इंसानियत दर्शकों के चेहरे पर सहज मुस्कान छोड़ जाती है। इन कलाकारों ने अपनी सहजता और सच्चाई से किरदार में जान फूंक दी है, जो दर्शकों को भावुक करने के साथ-साथ मनोरंजन भी प्रदान करती है। यह निर्णय न केवल फिल्म को प्रामाणिकता प्रदान करता है, बल्कि समाज में समावेशिता के संदेश को भी मजबूती से आगे बढ़ाता है। movie review

कहानी का संतुलन और निर्देशक का दृष्टिकोण

फिल्म का पहला हिस्सा थोड़ा धीमा है, और यहाँ एडिटिंग तथा टाइटर कट्स की गुंजाइश महसूस होती है। यह शुरुआती धीमी गति कुछ दर्शकों को थोड़ा बोर कर सकती है। हालांकि, इंटरवल के बाद फिल्म अपनी गति पकड़ लेती है और गहराई, मनोरंजन और भावनाओं का एक सही संतुलन बना लेती है। निर्देशक ने एक चुनौतीपूर्ण विषय को किसी भी पल मेलोड्रामा या उपदेशात्मकता में बदलने की गलती नहीं की है। यह प्रसन्ना की परिपक्व निर्देशन शैली का प्रमाण है। movie review

इसके बजाय, उन्होंने समाज में मौजूद पूर्वाग्रहों और भेदभाव को हास्य और इंसानी जुड़ाव के माध्यम से तोड़ा है। फिल्म यह ज़ोर देती है कि डाउन सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्तियों को ‘असामान्य’ या ‘विशेष’ ट्रीटमेंट देने के बजाय, उन्हें सामान्य तरीके से ट्रीट किया जाना चाहिए। यह संदेश बहुत ही सूक्ष्म और प्रभावशाली तरीके से दिया गया है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है कि कैसे समाज अक्सर इन व्यक्तियों को मुख्यधारा से अलग कर देता है। फिल्म मानवीय गरिमा और समानता के महत्व पर प्रकाश डालती है।

सहायक प्लॉट और संगीत

फिल्म का एक और दिलचस्प पहलू गुलशन की माँ का सबप्लॉट है, जो कहानी में मनोरंजन का पुट जोड़ता है और मुख्य कथानक को और भी समृद्ध बनाता है। यह सहायक कहानी मुख्य किरदारों की यात्रा को और भी मानवीय बनाती है। राम संपत का बैकग्राउंड स्कोर विषय के मूड से पूरी तरह मेल खाता है और भावनात्मक दृश्यों को और भी प्रभावी बनाता है। शंकर-एहसान-लॉय की धुनों में ‘गुड फॉर नथिंग’ गाना विशेष रूप से अच्छा बन पड़ा है, जो फिल्म के सार को दर्शाता है और दर्शकों के मन में उतर जाता है।

कुल मिलाकर, ‘सितारे ज़मीन पर’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि डाउन सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्तियों के प्रति समाज के नज़रिए को बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। आर.एस. प्रसन्ना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह न केवल संवेदनशील विषयों को उठाने में माहिर हैं, बल्कि उन्हें कलात्मक और मनोरंजक तरीके से पेश करने की क्षमता भी रखते हैं। यह फिल्म निश्चित रूप से दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ेगी और दर्शक एक सकारात्मक संदेश के साथ सिनेमाघर से बाहर निकलेंगे।

Trending